दिलीप बुवा : जिसने उसे बड़ा किया, उसे ही पैसो के लिए ठोक दिया

शूटआउट एट लोखंडवाला सिनेमा आया और लोगोने फिर से एकबार माया डोलस का नाम सुना। 1991 मे भी यही हालत थे जब ये घटना हुई थी। पर माया के साथ एक और ऐसा नाम भी था, जिस पर शायद ही लोगोने ज्यादा ध्यान दिया था …. वो था दिलीप… दिलीप बुवा, आज की ये कहानी हे उसी दिलीप बुवा की। ये कहानी शायद आपको अलग लगे, क्यूकी किसी मोवी की तरह यहा किसी किरदार को हीरो बनाया नहीं जाएगा. दिन था 16 नवंबर 1991 का पूरे भारत ने एक एकौंटर देखा, ये शायद पहली बार था की गुंडो को इतनी ज्यादा लाईमलाइट मिल रही थी।

1966 मे मुंबई के कांजूरमार्ग इलाके मे दिलीप बुवा का जन्म हुवा था, ये वही इलाका हे जहा पर अनेकों गुनहगारों की शुरवात हुई थी। शुरवात से ही दिलीप भी इन्ही लोगो के साथ पला बढ़ा और जब बड़ा हुआ तब शायद वो अपने इलाके का सबसे बड़ा शार्पशूटर बन गया। अंडरवर्ल्डमे उन दिनो कहा जाता था की, दिलीप बुआ से बड़ा कोई शार्पशूटर नहीं हे।

कहानी तब की हे जब कंजूरमार्ग और आजूबाजूके इलाके का भाई था रामा नाईक। बाबू रेशिम, रामा नाईक और अरुण गवली ने अपना बीआरए नाम का गिरोह शुरू किया था और वो गिरोह भी काफी जोरों पर था। अरुण गवली बाद मे इस गिरोह का सरगना बना पर उस दौर मे रामा नाईक के हाथो मे सारी जिम्मेदारिया थी। बुआ रामा नाईक का साथी बन गया। दावुद के गिरोह के सामने रमा नायक और अरुण गवली का गिरोह था… पर दावुद के पास था छोटा राजन ! छोटा राजन ने ट्रैप रचा, दिलीप बुआ वो जरिया था जिसे आगे कर के गवली गिरोह के एक सरगना का मारा जाना था।

साल था 1988 रामा नाईक और दावुद के बीच तनातनी बढ़ने लगी थी, कारण था शरद शेट्टी और एक जमीन का मामला। रामा नाईक पहले ही अरुण गवली के साथ मिलकर खतरनाक हो चुका था, दाऊद के कहने पर छोटा राजन रामा के आदमी कोही मोहरा बना लेता हे। पैसा क्या कुछ नहीं करवा सकता ? …और एक दिन, खुले आसमान के नीचे भरे रास्ते मे चेंबूर मे दिलीप बुआ अपने ही शागिर्द रमा नाईक को भरे रास्ते पर मार देता हे।

उधर माया डोलस भी इसी गिरोह मे था और वो अरुण गवली के नीचे काम कर रहा था। दाऊद, गवली गिरोह की ही तरह एक और गिरोह की मुंबई मे चलती थी, अमर नाईक के गिरोह की ! तो माया के उसके निशाने पर रहता था अमर नाईक का गिरोह। एक दिन गवली आउर नाईक गिरोह समझोता कर लेते हे तो गुस्से मे माया दावुदसे जा मिलता हे। यही से शुरवात होती हे माया की दहशत की, दावुद राजन और अपने लोगो को लेकर दुबई मे जा बैठा था… और सारा मुंबई माया और बुआ के हाथो मे था।

कहा जाता हे बादमे इन्होने अपने बॉस का भी सुनना बंद कर दिया और इसी से सकते मे आकर कहा जाता हे दावुदनेही पुलिस के जरिये शूटआउट एट लोखंडवाला करवाया था। अशोक जोशी करके गवली गिरोह का ही एक आदमी था, माया, दिलीप इन सभी ने उसके नीचे भी कभी काम किया होता हे पर बाद मे वो दाऊद के लिए काम करने लगते हे और छोटा राजन एक दिन अशोक जोशी को भी खत्म कर देता हे।

अशोक जोशी का उस एरिया अच्छे कामो के लिए भी काफी नाम था, तो गणपती उत्सव मे एक जगह पर उसकी बड़ी सी फोटो लगाई जाती हे। शराब के नशे मे जाते दिलीप माया जब इसको देखते हे तो उन को इस बात से गुस्सा आ जाता हे और वो उसी वक्त गोलीया बरसा देते हे। इस हादसे मे 5 लोगो की जान चली जाती हे। पुलिस भी सकते मे आ जाती हे, और फिर इन सभी को एक जगह से दूसरी जगह छिपना पड़ता हे। इस छिपन छिपाई मे वो लोखंडवाला मे छुपकर रहने लगते हे। बाकी की कहानी आपको पता ही हे …  यही अंत था सिर्फ 25 साल के एक गुंडे का…

लोगो को लगता हे की ऐसे लोगो ने बहोत नाम और पैसा भी कमाया पर काफी कम लोगो को सच्चाई के बारे मे पता होता हे। लोगो ने दिलीप बुवा और उसकी गाड़ी मे रखे 70 लाख रुपयो के बारे मे तो काफी सुना हे पर लोगो को ये नहीं पता की आज भी दिलीप बुवा का छोटा भाई रास्ते पर ठेला लगा के नींबू पानी बेचता हे।

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